Saturday, 7 July 2012

आज का प्रेमी
मै तो प्रेम की गंगा मे गोता लगा रहा हूँ  ।
मेरे तो सारे पाप धुल गए ।
अरे! देखो तो यह कौन आया ?
ये तो, मेरे  माता पिता है ।
इनकी क्या जरुरत ?
इन्होने तो अपना जीवन जी लिया ।
हमें भी तो जीने दो ।
अपनी  तरह ।
प्रेम की गंगा में ।
जहाँ मुझे केवल तुम ही दिखती हो ।
तुम ही तो मेरी जान हो  ।
एक क्या ?
तुम्हारे ऊपर तो मै, दोस्तों के माता पिता भी  कुर्बान कर दूँ  ।
कहाँ हो ?
आओ ,गलें लग जाओ ।

3 comments:

  1. धार तीव्रतर हो रही, बहे भाव की धार |
    मात-पिता का इस तरह, करे पुत्र उद्धार ||

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  2. धार तीव्रतर भाव की, बही शब्द की धार |
    मात-पिता का दूर से, करे पुत्र उद्धार ||

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