भटकते तरुण मन के राह को किसने दिखाया है ।
दिशा बदली जगह बदली नशे में उग्र रहता है ।
बदलते तरुण मन के बोध को किसने बिगारा है।
समझ बिगरा नजर बिगरी नाकारा सोच पनपा है ।
कभी हँसता कभी रोता कभी गमगीन रहता है ।
कभी अपनी तरह के लोग में मशगुल रहता है ।
नहीं सुनता किसी की बात वो अपनी ही करता है ।
हो कर भी नहीं होता समझ से दूर रहता है ।
दिशा बदली जगह बदली नशे में उग्र रहता है ।
बदलते तरुण मन के बोध को किसने बिगारा है।
समझ बिगरा नजर बिगरी नाकारा सोच पनपा है ।
कभी हँसता कभी रोता कभी गमगीन रहता है ।
कभी अपनी तरह के लोग में मशगुल रहता है ।
नहीं सुनता किसी की बात वो अपनी ही करता है ।
हो कर भी नहीं होता समझ से दूर रहता है ।
सादर नमन ||
ReplyDeletethoughtful
ReplyDeletethanx
Deleteसचमुच...बुरा हाल है आजकल...
ReplyDeleteसादर.
अनु
aabhar
Deletejabrdast bhav
ReplyDeletedhanyawad
Deletesabo ko dhanyawad
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