Sunday, 23 December 2012

sansakar

who will teach the children,  all about of sansakar. This word only makes a man who knows how to behave in a civilized society.why not we become an honest?To earn more and more money is not a bad thing but that should not be at the cost of honesty. To love someone is not a sin but that should not be one sided and only for the sake of physical contentment.All illegals activities born everyday a new crime and criminal.Think positive so that all the evil doers can be irradicated.

Saturday, 7 July 2012

आइफा 2012-होस्टेड बाई शाहिद कपूर
शाहिद  के लिए भारत गन्दगी का अम्बार हैं  ।
सिंगापूर साफ़ सुथरा स्थान हैं ।
भारत मैं तो दम घुटता हैं ।
साँस लेने में भी परेशानी होती हैं ।
अगर  ऐसा हें तो,आप भारत में क्या कर रहे हैं ?
अभी भारत छोरिये ।
सिंगापूर  जाके बसिए ।
भारत में अपना फेफरा मत कीजिये ख़राब ।
क्योंकि भारत है आपके लिए गंदगी का अम्बार ।
आज का प्रेमी
मै तो प्रेम की गंगा मे गोता लगा रहा हूँ  ।
मेरे तो सारे पाप धुल गए ।
अरे! देखो तो यह कौन आया ?
ये तो, मेरे  माता पिता है ।
इनकी क्या जरुरत ?
इन्होने तो अपना जीवन जी लिया ।
हमें भी तो जीने दो ।
अपनी  तरह ।
प्रेम की गंगा में ।
जहाँ मुझे केवल तुम ही दिखती हो ।
तुम ही तो मेरी जान हो  ।
एक क्या ?
तुम्हारे ऊपर तो मै, दोस्तों के माता पिता भी  कुर्बान कर दूँ  ।
कहाँ हो ?
आओ ,गलें लग जाओ ।

Thursday, 5 July 2012

किसी पत्नी को  मत कहना,
किसी का पति झूठा है
चाहे वो तीज भूखी हो,
या करवा चौथ भूखी हो
अगर कोई और मिल जाए,
तो सब कुछ  भूल  जाता है
यही मर्दों की फितरत बन गई है
घोर कलयुग है

Thursday, 21 June 2012

भटकते तरुण

भटकते तरुण मन के राह को किसने दिखाया  है  ।
दिशा बदली जगह बदली  नशे में उग्र रहता   है ।
बदलते तरुण मन के बोध को किसने बिगारा है।
समझ बिगरा नजर  बिगरी नाकारा सोच पनपा है ।
कभी हँसता कभी रोता कभी गमगीन रहता है ।
कभी अपनी तरह के लोग में मशगुल रहता है ।
नहीं सुनता किसी की बात वो अपनी ही करता है ।
हो कर भी नहीं होता समझ से   दूर रहता है ।

Sunday, 15 January 2012

utsav

सूर्य भगवान उर्या के स्रोअत है / सूर्य जब मकर में प्रवेश करते है उसी दिन मकर संक्रांति का उत्सव मनाया जाता है/ सूर्य उसी दिन दक्चिनयन से उतरयाँ होते है/ मकर संक्रांति के दिन से दिन बढ़ने लगता है/ मन का नकारात्मक भाव samapt  होने लगता है ओउर सकारत्मक भाव बढ़ने लगता है/ लोग अधिक काम करने को उद्धत होते है/ किसी भी उत्सव का do स्वरुप होता है--- बाह्य और आतंरिक/  उत्सव में आवश्यक बस्तुओ की बयवस्था बाह्य स्वरुप होता है/परन्तु आतंरिक स्वरुप से एक sandesh dhwanit होता है/ hame dhwanit sandesho को samaghana hoga taki हम  उत्सव के sahi arth  को apne ghar और bahar samghana hoga taki hamari samsakriti sahi artha logo को samagh में aay और हम उत्सव के sandeso के madhyam से lagatar hrash ho rahe manwiye mulwo को bacha sanke/