दर्द देता है ,
तेरा दीवार ।
तुम समझोगे कब ?
दर्द की आवाज़
तुम तक आ रही
सुनोगे कब ?
बंद आँखों ने
तेरे मन में बढ़ायी
दूरियां ।
बंद दरवाजों से
दम घुटता है
तुम मानोगे कब ?
बंद खिरकी के
गिरे परदों के
पीछे सोंच को
सोंचकर रोता है मन
इस दर्द को
बूझोगे कब ?
तेरा दीवार ।
तुम समझोगे कब ?
दर्द की आवाज़
तुम तक आ रही
सुनोगे कब ?
बंद आँखों ने
तेरे मन में बढ़ायी
दूरियां ।
बंद दरवाजों से
दम घुटता है
तुम मानोगे कब ?
बंद खिरकी के
गिरे परदों के
पीछे सोंच को
सोंचकर रोता है मन
इस दर्द को
बूझोगे कब ?
जूझोगे तब ही सखे, बूझोगे यह दर्द |
ReplyDeleteबढ़िया है मित्र-
शुभकामनायें-
dhanyawad
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